हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इंसान कलमा-गो हो और कहे कि हम तस्बीह-ए-ज़हेरा नहीं जानते तो बिला तर्दीद कज़्ब-ए-महज़ है!
इसलिए कि तस्बीह-ए-हज़रत ज़हेरा से मुताल्लिक रिवायात जमला मसादिर और कुतुब-ए-जामे अहादीस अहले सुनत में भी बाक़ायदा दर्ज हैं!
हम यहां सिर्फ सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम में मज़कूर रिवायात पर इक्तिफा करेंगे।
मुहम्मद बिन इस्माईल बुखारी (मुतवफ्फी 256 हिजरी) और मुस्लिम बिन हज्जाज (मुतवफ्फी 261 हिजरी) ने इब्ने अबी लैला से रिवायत की है।
एक दिन हज़रत फातिमा ज़हेरा ने हज़रत अमीरुलमोमिनीन अलैहिस्सलाम से उमूर-ए-खानादारी मिन जुमला चक्की चलाने के सबब अपने दस्त-ए-मुबारक में दर्द व तकलीफ बयान फरमाई।
शहज़ादी को खबर मिली नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम के पास कुछ असीर लाए गए हैं, आप खिदमत-ए-रिसालत में तशरीफ लाईं और अपने लिए कनीज़ का मुतालबा फरमाया।
नबी अकरम ने शहज़ादी के मुतालबे पर सवाल फरमाया, क्या मेरी पारा-ए-जिगर तुम्हारी तलब से बेहतर मुआविन तुम्हें न अता कर दें?
शहज़ादी ने इसबात में जवाब दिया,तब नबी अकरम ने फरमाया, मेरी लाड़ली, जब बिस्तर पर सोने जाओ उस वक्त 34 दफा अल्लाहु अकबर, 33 दफा अलहम्दुलिल्लाह और 33 दफा सुबहानल्लाह कहो। शहज़ादी ने फरमाया,हम अल्लाह व रसूलुल्लाह से राज़ी हैं।
[सहीह मुस्लिम ने इस रिवायात को बा उनवान बाबुत्तस्बीह औव्वलुन्नहार व इंदन्नौम नक़्ल किया है।]
मुस्लिम बिन हज्जाज ने इब्ने अबी लैला से नक़्ल किया है कि हज़रत अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम ने कभी भी इस ज़िक्र को फरामोश न किया।
हत्ता कि जंग-ए-सिफ्फीन की सर्द रातों में भी ज़िक्र-ए-तस्बीह-ए-हज़रत ज़हेरा को दाइमान अंजाम देते रहे!
काबिल-ए-तवज्जुह कुतुब-ए-अहले सुनत में तस्बीह-ए-फातिमी से मुताल्लिक कई रिवायात नक़्ल तो हुई हैं लेकिन ज़िक्र अलहम्दुलिल्लाह को ज़िक्र सुबहानल्लाह पर मुकद्दम या बरअक्स किया गया है।
बहरकैफ वारासत-ए-फातिमी का इंकार करने वाले भी तस्बीह-ए-फातिमी जैसी इबादत का इंकार न कर सके!
काबिल-ए-ज़िक्र बरखिलाफ सीरत-ए-आइम्मा-ए-मासूमीन व रविश-ए-उलमा-ए-इमामिया व मोमिनीन अहले सुनत ने इस तस्बीह-ए-फातिमी को बौक़्त-ए-ख़्वाब (सोते वक्त) से मख्सूस जाना है।
तस्बीह-ए-फातिमी तश्शुअ की निगाह में:
तस्बीह-ए-मुक़द्दस हज़रत ज़हेरा सलामुल्लाह अलैहा का ताल्लुक हज़रत हम्ज़ा (जिन्हें सैय्यदुश्शोहदा कहा गया है) से भी है।
हज़रत ज़हेरा सलामुल्लाह अलैहा ने हज़रत हम्ज़ा की कब्र की मिट्टी से बनाई जिसमें 34 दाने अल्लाहु अकबर के, 33 दाने अलहम्दुलिल्लाह के और 33 दाने सुबहानल्लाह के थे!
मरूर-ए-अय्याम के साथ उसी तस्बीह को हज़रत अली इब्निल हुसैन इमाम ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम ने कब्र-ए-मुतह्हर हज़रत सैय्यदुश्शोहदा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ख़ाक से तैयार फरमाई। इमाम ज़ैनुल आबदीन अलैहिस्सलाम के इस अमल से इस्म-ए-मुबारक हज़रत ज़हेरा, ज़िक्र-ए-खुदावंद मुतआल की साथ ता क़यामत बाक़ी रहेगा।
तस्बीह-ए-फातिमी: ज़िक्र ए कबीर व कसीर:
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का इरशाद-ए-गिरामी है,अल्लाह तआला के जितने अज़कार हैं, उनमें कबीर तरीन ज़िक्र, तस्बीह-ए-हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा है!
नीज़ इमाम अलैहिस्सलाम ने फरमाया,अगर तुम्हारे अमाल सोने के पहाड़ बना दिए जाएं, उनका वज़न कम और किसी मोमिन के ज़रिए पढ़ी गई तस्बीह-ए-फातिमी का वज़न ज़्यादा होगा!!
हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के अक़वाल-ए-गिरामी में तस्बीह-ए-फातिमी को ज़िक्र-ए-कसीर से तअबीर किया गया है।
नीज़ आप ने फरमाया,तस्बीह-ए-फातिमी खुदावंद मुतआल के नज़दीक हज़ार रकअत नमाज़ मुस्तहब से बेहतर करार दी गई है!!!
इमाम अलैहिस्सलाम ने फरमाया,अगर चाहते हो कब्र में तुम्हारा जिस्म जलने, सड़ने, गलने से महफूज़ रहे तो अल्लाह तआला ने उंगलियों के पोर बनाए हैं, उन पर तस्बीह-ए-फातिमी पढ़ो कि उनसे तारीकी-ए-कब्र में नूर ज़ाहिर होगा!!!
काबिल ए गौर:
गुज़िश्ता अदवार में तस्बीह का रंग आबी था।
इमाम अलैहिस्सलाम ने इरशाद फरमाया, तुम अपने बच्चों को नमाज़ की तरह तस्बीह की तालीम भी दिया करो!
तस्बीह-ए-फातिमी की असल वजह:
अल्लाह तआला की मशीयत है कि ज़िक्र-ए-कबीर व कसीर (तस्बीह-ए-फातिमी) के साथ शोहदा-ए-राह-ए-इस्लाम हज़रत हम्ज़ा व हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत व सोगवारी जारी रहे!!!!
हज़रत फातिमा ज़हेरा सलामुल्लाह अलैहा ने इस अज़ीम इबादत ज़िक्र-ए-कबीर व कसीर को हमेशा शामिल रखा, हत्ता कि वक़्त-ए-आख़िर फरमाया,मैं अपने हुजरे में जा रही हूं, जब तक तस्बीह की आवाज़ आए समझो मैं ज़िंदा हूं, जब तस्बीह की आवाज़ थम जाए समझ लेना मैं दुनिया से रुख्सत हो गई हूं; बनाबर-ए-रिवायात ब-ऐनहा ऐसा ही हुआ!!!!
आपकी टिप्पणी